Pageviews last month

Wednesday, November 27, 2013

देखना एक दिन...

देखना एक दिन,
गोरैया बनकर तुम्हारे आँगन में आकर बैठूंगी...
सुबह-सुबह की तुम्हारी हरकतों को,
टुकुर-टुकुर देखूंगी...
दाना डाल देना,
चुपचाप फिर चली जाऊँगी।

देखना एक दिन,
गिलहरी बनकर तुम्हारी बालकनी में टहलूंगी...
कमरे के अंदर हल्के से झांककर,
तुम्हें लैपटॉप पे काम करते हुए देखूंगी..
धीरे से तुम्हारे करीब आने की कोशिश करुँगी,
पलटकर जब देखोगे मेरी ओर..
तब सरपट बालकनी में भाग जाऊँगी ।

देखना एक दिन,
कोयल बनकर तुम्हारी छत पर आऊँगी...
कुहू करते करते प्यास बड़ी लगती है..
पानी रख देना,
इस कोयल को तुम्हारे हाथ से पानी बड़ी मीठी लगती है..
पानी पियूंगी, तुम्हें देखूंगी,
कुहू करुँगी और फिर उड़ जाऊँगी ।

अगर ऐसा होता तो तुमसे मिलना कितना आसान होता ना !
इंतज़ार करना,
कभी ऐसा ही भेस बनाकर तुमसे मिलने आ जाऊँगी..

अगर तुम मुझे पहचान नहीं पाओगे..
कम से कम मैं तो तुम्हें जी-भर देख पाऊँगी...
इंतज़ार करना,
इक दिन तुम्हारे आँगन में ज़रूर आऊँगी ...

Sunday, November 24, 2013

नज़्में सुना जाना...

जब दूर चली जाऊँगी तुमसे...
तब मुझे ढूंढते हुए मेरी क़ब्र पे आना..
दो नज़्में सुना जाना..
मेरे साथ-साथ मेरे हिस्से की ज़मीं भी हसीं हो जायेगी ।

फूल ना लाना,
आँसू भी ना बहाना,
बस दो बातें सुना जाना ।

समंदर के किनारे वाली बेंच पर,
जहाँ रोज़ बैठा करते थे हम..
रेत का एक घर बनाते,
अपना नाम लिखा करते थे हम..
और जब समंदर अपने साथ
बहा ले जाती थी हमारे आशियाने को,
मैं कहती ये हमारे सपने के पूरा होने का इशारा है..
तुम धीरे से मेरे कानों में कहते - 'नौटंकी' ।
कौन-सा ऐसा तूफ़ान आया फिर,
जो बहा ले गया हमारी ख़्वाहिशों के आशियाने को ?
तुम क्यूँ नहीं समझ पाए ?

अब देखो मैं ज़मीं के अंदर मिट्टी-मिट्टी, रेत-रेत इकट्ठा कर रही हूँ..
फिर कभी मिलेंगे, तो बनायेंगे अपना आशियाना..
समंदर से कहेंगे, कर दो हमारी ख़्वाहिश पूरी...

लेकिन तब तक
जब भी मुझसे मिलने आना,
दो नज़्में सुना जाना..
फूल ना लाना,
फूल मुरझा जाते है।
नज़्में सुना जाना..
शब्दें खिली रहती है..
ज़िंदा रहती है...
सुकून देती है।

नज़्में सुना जाना...
दो नज़्में सुना जाना ...